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Poetry

आसीरी

उसकी बेरहम नज़र
और वो अजीब सी छुवन
जैसे हज़ारो काँटों ने
नोच लिया हो  बदन मेरा
उसकी उस घिनौनी  सोच ने
जैसे रंग दिया हो कफ़न मेरा
किसे बताऊ ?
कैसे बताऊ ?
क्या कोई समझेगा मुझे ?
मेरी इन दबी चीखोसे
क्या कोई बाहर निकलेगा मुझे ?
बड़ी अजीब सी उलझन है ये
अपना समज़कर बता दू ?
या फिर छुपा कर ही रखू ?
कही मुझे कोई गलत न समझे
उसके पाप का बोझ
कही मुझपे न डाल दे
                -प्रियंका
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By writoshine

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